Wednesday, July 29, 2009

एक ख़ूबसूरत रिश्ता

रिश्तों का मकड़जाल कुछ ऐसा होता है कि इससे निकल पाना नामुमकिन होता है। रिश्ते की डोर थामे हम इस दुनिया में आते हैं और समय के साथ उसमें बँध कर रह जाते हैं। वक़्त की पतंग आगे निकल जाती है और हम ढील के लिए तरसते रहते हैं। हर रिश्ते की अपनी अपेक्षा और हर अपेक्षा पर खरा उतरने की चुनौती।

इन सब के बीच अपने अरमान तो बस पिंजरे में बंद किसी पंछी की तरह खुले आसमान में उड़ने के लिए फड़फड़ाते रहते हैं। लेकिन आखें चंद हसीन लम्हों की आस में ख़्वाब देखना नहीं छोड़ती। आख़िरकार ज़िंदगी किसी मोड़ पर हमारी मुलाक़ात ऐसे इंसान से करवाती है जो हमारे लिए बिल्कुल अंजान होता है। एक अजनबी, जिससे दूर-दूर तक हमारा कोई रिश्ता नाता नहीं होता। लेकिन वही हमारे सपनों को पंख देता है। हमारी झोली ख़ुशियों से भर देता है और हमारी ज़िंदगी में ऐसे शामिल हो जाता है जैसे वो कभी अजनबी था ही नहीं। रिश्तों की भीड़ में एक रिश्ता और जुड़ जाता है लेकिन सब रिश्तों से जुदा, एक ख़ूबसूरत रिश्ता। जिसके बाद ज़िंदगी की तरफ हमारा नज़रिया बदल जाता है।

अनजाने ही बने इस रिश्ते को नाम देना मेरे ख़याल से बेईमानी होगी। वो तो बस एक फरिश्ते की तरह आता है और हमारी ज़िंदगी में खुशियाँ बिखेर कर एक दिन अपनी यादों की दौलत से हमें मालामाल करके बहुत दूर चल जाता है.....शायद किसी और की ज़िंदगी सँवारने।

2 टिप्पणियाँ:

nidhi said...

wah wah kya likha hai..... lagta hai ki tumko tumhara farishta mil gaya hai....
bus ek he baat bolna chahate hu ki agar koi farishta tumhari zindgi main aata hai to usko apne pass rakhna aur uska khayal rakhna tumhara kaam ho jata hai....
aur wo farishta tumhara hota hai usko kisi aur ke pass bhajna to tumhari naadani hai....
balki usko apne pass for ever rakhna chahiye......
aur kisi ajnabi ke pass to kabhi bhajan he nahi chahiye........

Vandana said...

Yar bahut acha likha hai ! waise aur bhi acha hoh sakta tha...aur thoda details mein likhte. koyi ek rishta ya fir koyi ek udharan de ke aur bada kar sakte ho. but very nice..keep it up ! :)