Thursday, August 4, 2011

माँ

घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हुआ.
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ा हुआ.

काला टीका, दूध-मलाई,
आज भी सब कुछ वैसा है.
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
प्यार ये तेरा कैसा है?

सीधा-साधा, भोला-भाला,
मैं ही सबसे अच्छा हूँ.
कितना भी हो जाऊं बड़ा,
'माँ'! मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ.

Wednesday, July 29, 2009

एक ख़ूबसूरत रिश्ता

रिश्तों का मकड़जाल कुछ ऐसा होता है कि इससे निकल पाना नामुमकिन होता है। रिश्ते की डोर थामे हम इस दुनिया में आते हैं और समय के साथ उसमें बँध कर रह जाते हैं। वक़्त की पतंग आगे निकल जाती है और हम ढील के लिए तरसते रहते हैं। हर रिश्ते की अपनी अपेक्षा और हर अपेक्षा पर खरा उतरने की चुनौती।

इन सब के बीच अपने अरमान तो बस पिंजरे में बंद किसी पंछी की तरह खुले आसमान में उड़ने के लिए फड़फड़ाते रहते हैं। लेकिन आखें चंद हसीन लम्हों की आस में ख़्वाब देखना नहीं छोड़ती। आख़िरकार ज़िंदगी किसी मोड़ पर हमारी मुलाक़ात ऐसे इंसान से करवाती है जो हमारे लिए बिल्कुल अंजान होता है। एक अजनबी, जिससे दूर-दूर तक हमारा कोई रिश्ता नाता नहीं होता। लेकिन वही हमारे सपनों को पंख देता है। हमारी झोली ख़ुशियों से भर देता है और हमारी ज़िंदगी में ऐसे शामिल हो जाता है जैसे वो कभी अजनबी था ही नहीं। रिश्तों की भीड़ में एक रिश्ता और जुड़ जाता है लेकिन सब रिश्तों से जुदा, एक ख़ूबसूरत रिश्ता। जिसके बाद ज़िंदगी की तरफ हमारा नज़रिया बदल जाता है।

अनजाने ही बने इस रिश्ते को नाम देना मेरे ख़याल से बेईमानी होगी। वो तो बस एक फरिश्ते की तरह आता है और हमारी ज़िंदगी में खुशियाँ बिखेर कर एक दिन अपनी यादों की दौलत से हमें मालामाल करके बहुत दूर चल जाता है.....शायद किसी और की ज़िंदगी सँवारने।

Friday, December 19, 2008

तेरी मेरी अधूरी सी कहानी.


तेरी मेरी अधूरी सी कहानी
मुट्ठी भर जज़्बात, आँख भर पानी

वो शाम का ढलना, वो दिल का मचलना
वो हाथों में हाथ लिए मीलों तक चलना
कभी बेवजह की तक़रार, कभी प्यार भरी नादानी

तेरी मेरी अधूरी सी कहानी

वो चाँद का दीदार, वो सपने हज़ार
वो रात होते ही फ़िर सुबह का इंतज़ार
कभी बातों का सिलसिला, कभी चुप्पी अनजानी

तेरी मेरी अधूरी सी कहानी

वो मिलने की ख़ुशी, वो बिछड़ने का ग़म
वो सोचना एक दिन पति-पत्नी होंगे हम
कभी अपनी बेबसी पर हँसना, कभी बताना आँसुओं को पानी

तेरी मेरी अधूरी सी कहानी
कभी तेरी ज़ुबानी, कभी मेरी ज़ुबानी

Thursday, December 11, 2008

आख़िर क्यूँ ?

अगर मैं कहूँ कि अपने इस पहले ब्लॉग को लिखते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है और इसके माध्यम से मैं अपने भीतर हिलोरे मार रही विचारों की लहरों को शब्दों के धरातल पर उतार लाना चाहता हूँ तो शायद आपमें से अधिकांश लोग अपनी भौहें टेढ़ी कर लें।

नहीं समझे ??
चलिए आपकी भाषा में समझाता हूँ... means a Biggg No to this article.
अब समझ गए होंगे !
जी हाँ ! शायद आप इस आर्टिकल को आगे पढ़े ही ना। सोचें पता नहीं कौन सी भाषा में लिखा है ? अब इसे क्या कहा जाए ? अपनी राष्ट्रभाषा का अपमान, फैशन स्टेटमेंट या फ़िर english mania. इंग्लिश इस कदर हिन्दी पर हावी हो चुकी है की अपने ही देश में अपनी राष्ट्रभाषा refugee सी लगती है। ऐसा लगता है इस देश में आतंकवादियों के बाद सिर्फ़ दो ही गुनाहगार और बाकी हैं... एक तो बेचारा पप्पू (क्यूँकि pappu can't dance sala) और दूसरा हिन्दी बोलने वाले लोग।
इंटरव्यू हो, मीटिंग हो, पार्टी हो या फ़िर प्रधानमंत्री का देश के नाम संदेश ...सब कुछ इंग्लिश में। लेकिन शायद कुछ ही लोग होंगे जो शुद्ध हिन्दी या इंग्लिश बोलते हैं बाकियों का काम आज भी yes, no, ok, sorry, thank you और mention not से ही चल रहा है।
लेकिन कब तक ऐसे चलता ?
बस ढूँढ लिया जुगाड़ ..."Hinglish" !! जनसँख्या बढ़ाने के अलावा "जुगाड़" ही तो एक ऐसी चीज़ है जिसमे हिन्दुस्तानी सबसे आगे हैं। बस फ़िर क्या था बन गई hinglish आम आदमी की भाषा।
"The language of a common Indian man."

ये एक ऐसी भाषा है जिसे आम आदमी आसानी से समझ और बोल सकता है। और यही कारण है कि Film Industry हो या Advertising Industry सभी ने दिल खोल के इसका स्वागत किया। मैं भी इसे सही मानता हूँ क्यूंकि भाषा केवल अपने विचारों को व्यक्त करने का ही माध्यम नहीं होती बल्कि भाषा वो है जिसके ज़रिये जितनी आसानी से आप अपनी बात कहते हैं उतनी ही आसानी से सामने वाला आपकी बात समझ सके। इसी वजह से चाहे "ठंडा मतलब Coca-cola" हो या "ये दिल मांगे more" या फ़िर "youngistan" सभी ने आम आदमी के दिल पर दस्तक दी।

अब आलम ये है कि इस वक्त बनने वाले 90% विज्ञापन या तो हिन्दी में होते हैं या फ़िर हिंगलिश और ये बात Ad Agencies में बैठे हुए बड़े-बड़े "आला अफसर" भी अच्छी तरह जानते हैं लेकिन फ़िर भी हिन्दी Copywriters के साथ सौतेला व्यवहार होता है।
आख़िर क्यूँ ?

Wednesday, December 3, 2008

मेरे ब्लॉग में आप सभी का स्वागत है।